समद ऋषि जी ज्ञानी हो के जिसने वेद विचारा

 समद ऋषि जी ज्ञानी हो के जिसने वेद विचारा 

वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लगे सारा.... ...........

 

एक बाप के नौ नौ बेटे, ना पेट भरण पावैगा

बीर-मर्द हों न्यारे-न्यारे, इसा बखत आवैगा

घर-घर में होंगे पंचायती, कौन किसनै समझावैगा

मनुष्य-मात्र का धर्म छोड़-कै, धन जोड़ा चाहवैगा

कड़ कै न्यौळी बांध मरेंगे, मांग्या मिलै ना उधारा..............

 

 

लोभ के कारण बल घट ज्यांगे-पाप की जीत रहैगी

भाई-भाण का चलै मुकदमा, बिगड़ी नीत रहेगी

कोए मिलै ना यार जगत मैं, ना सची प्रीत रहेगी

भाई नै भाई मारैगा, ना कुल की रीत रहेगी

बीर नौकरी करया करेंगी, फिर भी नहीं गुजारा ..............

 

 

सारे के प्रकाश कालू का, ना कचा घर पावैगा

वेद शास्त्र उपनिषदांना जाणनियां पावैगा

गऊ लोप होज्यांगी दुनियां में, ना पाळनियां पावैगा 

मदिरा-मास नशे का सेवन, इसा बखत आवेगा

संध्या-तर्पण हवन छूट ज्यां, और वस्तु-जांगी बाराह ..............

 

 

कहै लखमीचंद छत्रीपण  जा-गा, नीच का राज रहेगा

हीजड़े मिनिस्टर बण्या करेंगे, बीर के ताज रहेगा

दखलंदाजी और रिश्वतखोरी सब बे-अंदाज रहेगा

भाई नै तै भाई मारैगा, ना न्याय-इलाज रहेगा

बीर उघाडै सिर हांडेंगी, जिन-पै दल खप-गे थे अठाराह...............

 

समद ऋषि जी ज्ञानी हो के जिसने वेद विचारा 

वेदव्यास जी कळूकाल का हाल लिखण लगे सारा.... ...........

Comments