जिसकी कूख तैं जन्म लिया, तूं उसनें कहिए माता

 जिसकी कूख तैं जन्म लिया, तूं उसनें कहिए माता

जुलमी जोबन कामदेव, मेरे नां काब्बु मैं आता।।

 

नरक बीच मैं दरजा होगा, मेरी बात मोड़ी का,

मेरी उमर सै ठारा साल की, तू सै मेरी जोड़ी का,

पूरणमल तूं लटका लेले, इस जिंदगी थोड़ी का,

कसी-कसाई खड़ी ठाण पै, बण्य चढणिया घोड़ी का,

दया कर के दिए तप्त बुझा, तूं क्यूं नां पाणी प्यात्ता।।

 

एक पहर की नूणादे न्यूं, कद्य की सिर पटकै सै,

छाती जलग्यी न्यूएं मेरी, तूं दूर खड्या मटकै सै,

तेरी स्यान नैं देख्य देख्य कै, मेरा जी भटकै सै,

रुत्त पै मेवा पाक्य रही, या निच्चै नैं लटकै सै,

सेब, संगतरे, अंगूर, दाख, क्यूं ना सुआ बण्य के खाता।।

 

मेरा इस तरियां रह्या रूप च्मक, जणूं बिजली च्यमकै घन मैं,

मिठू मिठू बोल इसे जणूं, कोयल कुक्कै बन मैं,

तेरी चंदा कैसी स्यान देख्य, मेरे उर्दू लोर बदन मैं,

बूढे तैं थी भली कुंवारी, दुख हुया जिवानीपन्न मैं,

मैं पल्ला पसांरू भीख घाल्य दे, मैं भिक्सक तूं दाता।।

 

बिस्वे तीन मर्द मैं हौं सैं, सत्तरा विस्वे नारी,

बीर मरद की जोट्य मिले, न्यू कहैं ऋसि, ब्रह्मचारी,

तोस्सक तकिये लाग्य रहे, और बिच्छ रहे पिलंग निवारी,

कहें मानसिंह ख्याल करै नैं, तेरी क्यूं गई अक्कल मारी,

नीर गेर के तप्त बुझादे, न्यू लखमीचन्द गाता।।

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