रोवण आळी मनैं बतादे के बिप्ता पड़गी तेरे म्हं

रोवण आळी मनैं बतादे के बिप्ता पड़गी तेरे म्हं

गैरां के दुख दूर करणियां या ताकत सै मेरे म्हं बैठ एकली रोवै सै क्यूं चेहरा हुया उदास तेरा के सासू नै बोली मारी के बालम बदमाश तेरा के नणद जिठाणी करैं लड़ाई घर में बाजै बांस तेरा के देवर सै तेरा हठीलाअ बन्द कर राख्या सांस तेरा के चोरां नै माल लूट लिया आंधी और अंधेरे म्हं के घणी कसूती चिट्ठी आग्यी गोती नाती प्यारे की के तेरे संग में हुई लड़ाई साबत भाई-चारे की कोय आवै कोय जाण लागरया जगत सरां भटियारे की लिकड़ी होठ्यां चढगी कोठ्या दुनियां चोब नकारे की तनै गादड़ आळी रात बणा दी मैं सहम धिका दिया झेरे म्हं बैठ कै एकली रोवै सै के सिर पै खसम गुसांई ना कई रोज का भूखा सूं मनैं रोटी तक भी खाई ना डेढ पहर आए नै हो लिया तोसक दरी बिछाई ना मैं आया था ठहरण खातर तूं भी सुखिया पाई ना हुई कन्हार पसीना सुख्या सर्छी बड़ै बछेरे म्हं ले गोदी में रोवै सै के बाप मरया इस याणे का सारा भेद खोल कै कहदे काम नहीं शरमाणे का उसा किसा मनै मतन्या जाणै मैं माणस ठयोड़ ठिकाने का पांणची म्हं रहण लागग्या ‘मांगेराम’ सुसाणे का पहले मोटर चलाई फेर सांग सीख लिया लखमीचन्द के डेरे म्हं

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