कृष्ण भजन - ला नाव अबेर भयी केवट

ला नाव अबेर भयी केवट
दिन छिप गया दूर नगरिया
दिन छिप गया दूर नगरिया 
दिन छिप गया दूर नगरिया
ला नाव ......

श्री जी ने ठाकुर जी का आवाज दी ठाकुर जी उस नाव को धीरे धीरे उनकी तरफ ले आए सखियों ने कहा कि हमें जमुना के पार जाना है ठाकुर जी सखियों से कहने लगे 

छोटी सी नाव बोझ भारो
छोटी सी नाव बोझ भारो
टूटेगी क्या बिगड़ेगा थारो
डूबेगी क्या बिगड़ेगा थारो 
हां मानो हान होय मेरी
लूट जाएगी राम कुठरिया
ला नाव ......

बरसाने गाँव बसाय लेगी
उतराई भानु कुँवर देगी
देगी बनवाय एक कि दो
गहबर वन राम कुठरिया
ला नाव .....

रहूँ अलग ना मैं सन्यासी हू
पूरे कुनबे को वासी हूँ
इकला मत जानें ब्रिज वासिन
मेरे दो दो बाप डुकरिया
ला नाव ....

दो दो बापन को वारा तू
कछु दिन कर संग हमारो तू
कारे ते गोरा है जायेगो
बरसाने की नहाय कुठरिया
ला नाव ....

हंसा नहाय मानसरोवर मै
क्यों नहाय तेरी गिन्दरी पोखर मै
पोखर मैं हंस कहाँ देखे
क्यो बोले झूट गुजरिया
ला नाव ....

मुह चढ़ रहयो नाव खिवैया को
बाबुल के राज बसैया को
कोई सुन लेगो बरसाने को 
तेरी कर दे बन्द डगरिया
ला नाव .....

सखियों ने कहा हमारे नगर में रहते हो और हमें ही ऐड दिखाते हो कोई सुन लेगा बरसाने का तेरी कर दे बंद डगरिया
तेरा लॉक डाउन लग जायेगा 
तू आएगा ना जायगा

क्यो खीज होय साची बातन पै
तुम सीला खोह वृन्दावन मैं
नित गोबर बिनो गली गली
थारे सर पे धरी छपरिया
ला नाव ....

सखी कहती है अच्छा लाला हम गोबरधारी हैं चलो मानते हैं

चलो हम तो गोबरधारी हैं
पर ये वृषभानु दुलारी हैं
लावै ना नाव जवाब देवे
तेरी धीमर जात कवरिया
ला नाव ...

तुम एक कहो तो सुन लोगी
बता उतराई मै क्या दोगी
दोगी तो पार उतारूंगा
नही सीधी पड़ी डगरिया
ला नाव ....

अब बात सही जगह आके टिकी
लाला कछु लेबै कु तैयार है और जहाँ किशोरी जी है वहाँ किसी चीज की कोई कमी ही नहीं है किशोरी जी तो हमेशा आतुर रहती हैं सदा देने के लिए जब तक लेने वाला अपने मुँह से ना कह दे कि मैं तृप्त हो गया हूँ

देऊ हार गले को उतराई
हाथन की मुद्रा सुखदायी
सुख वास देऊ बरसाने को
तेरी कट जाए सहज उमरिया
ला नाव

दो-गी तो नाम तिहारो है
ये चाकर श्याम तिहारो है
हा हाल उतारू वृषभानु दुआरी
अपनी रख नेक नजरिया
ला नाव .....

संग्रहकर्ता - ललित भारद्वाज सिहानी

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