भजन
तर्ज: झूठ बोले कौआ काठे, काले कोवे
से डरियो
जहाँ तुम्हारे हाथी घोड़े
बने महल रंगीला री
यहां गर्दिश के दिन काटे थी
मेरी नार सुशीला री
जहाँ महल तुम्हारा बना हुआ
वहाँ पड़ी हुई थी छान मेरी
हां... पड़ी हुई थी छान मेरी
लाचारी ने सब छीन लिया
अब वो ही थी पहचान मेरी
अब वो ही थी पहचान मेरी
लगता है यो कंगाली मै
भाई आटा गीला री
यहां गर्दिश के दिन काटे थी
मेरी नार सुशीला री
उस पतिव्रता ने आज तलक भी
भरके पेट नहीं खाया
हां..भरके पेट नहीं खाया
दिन बीत गए बदहाली मै
कभी सुख का समय नहीं आया
कभी सुख का समय नहीं आया
भूके रह... के भजन करे...
भूके रह के भजन करे
मुँह पड गया पीला री
यहां गर्दिश के दिन काटे थी
मेरी नार सुशीला री
वो फटी कमलिया ओढ़े थी
और रोज उसे ही सिलती थी
चेहरे की सुर्खी कायम थी
पर सूरत तुमसे मिलती थी
जड़े सितारे साड़ी मै
तन लगे सजीला री
यहां गर्दिश के दिन काटे थी
मेरी नार सुशीला री
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