सुनता मेरी कौन है , किसे सुनाऊँ मैं

 

तेरे दर को छोड़कर,
अरे तेरे दर को छोड़कर, किस दर को जाऊँ मैं
सुनता मेरी कौन है , किसे सुनाऊँ मैं
तेरे दर को छोड़कर……………………..

जब से याद भुलाई तेरी, लाखों कष्ट उठाएं है
ना जाने इस जीवन में, कितने पाप कमाए हैं
हूँ शर्मिंदा आपसे , क्या बतलाऊँ मैं
तेरे दर को छोड़कर…………………

मेरे पाप कर्म ही तुझसे, प्रीत करने देते हैं
जब चाहूँ तब मिलू आपसे, रोक मुझे ये लेते हैं
अब किस विधि , प्यारे आपका दर्शन पाऊँ मैं
तेरे दर को छोड़कर………………………

जो बीती सो बीत गई अब, बाकी उमर सँभालूँगा
आपके चरणों में बैठकर, गीत प्रेम के गा लूँगा
यह जीवन अपना राम जी , सफल बनाऊँ मैं
तेरे दर को छोड़कर…………………..

तूँ है नाथ वरों का दाता, तुझसे सब वर पाते हैं
ऋषि, मुनि और योगी सारे, तेरे ही गुण गाते हैं
छींटा दे दो ज्ञान का, होश में जाऊँ मैं
तेरे दर को छोड़कर…………………

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