कहाँ गए पैसे कहा गया बेटा, न्यू करता करता रह गया रे

 

कहाँ गए पैसे कहा गया बेटा, न्यू करता करता रह गया रे

चक्कर खा के गिरा धरण पे मरता मरता रह गया रे

 

लगी कसूती चोट जिगर पै दिल खामोश रहया ना 

दुःख के कारण साँस शरीर मै कई कई कोस रहया ना

नज़र राम की करड़ी, करतब, का भी दोष रहया ना

मन बुद्धि हुए फ़ेल सेठ को तन का होश रहा ना

था मरने का ब्योत, प्राण हरी हरता हरता रह गया रे

चक्कर खा के गिरा धरण पे

 

होश हुआ ताराचंद को फिर जिंदगानी ने खोवै था

धरती मे सर मार मार कै हिड़की भर भर रोवै था

दर्द मुसीबत का दिल पै घना हद से ज्यादा होवे था

कदे रुपे रेते मै कदे बड़ बड़ पानी मै टोहवे था

नहीं मिलै, हा का हुंकारा, भरता भरता रह गया रै

चक्कर खा के गिरा धरण पे

 

नहाने खातर बड़ा नदी मै वक्त आवता हाथ नहीं

जीते जी मर, जाना दुखियो भूले जा दिन रात नहीं

हद से ज्यादा बिखर गया मन, बुद्धि देवे साथ नहीं

घर जाऊ या मर जाऊ, आती, समझण मै बात नहीं

सेठानी के डर से सेठ जी-डरता डरता रह गया रे

चक्कर खा के गिरा धरण पे

 

किसी कर्म ने आन मुझे दुःख के कोल्हू मे जोड़ दिया

टोटे खोटे दुःख मोटे नै सारा ही भांडा फोड़ दिया

इस लड्डन सिंह को आज राजबल दुःख दर्दो ने तोड़ दिया

गयी बिगड आर्थिक स्तिथी मन्नै इस विध गाना छोड़ दिया

मेरे हिर्दय अन्दर, बन्द छन्द जो धरता धरता रह गया रे चक्कर खा के……

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