धन धन है तेरी कारीगरी भगवान रे

 धन धन है तेरी कारीगरी भगवान रे धन धन है तेरी कारीगरी भगवान

भेद समझ मै आया ना तेरी अजब निराली शान धन धन है तेरी

 

हाथी बड़ा बना दिया इतना छोटी आंखें लगाई क्यों

सूरज इतना गर्म किया फिर चांद में शीतलताई क्यों

छोटी सी चींटी के पेट में भारी गांठ लगाई क्यों

कोई टुकड़े से मोहताज फिरे दर-दर का बना भिखारी क्यों

गद्दी आसीन किया कोई दई इतनी साहूकारी क्यों

उसी रहा से आते सब धर्मी और अत्याचारी क्यों

भाई सांप के कान दिए क्यों ना वह बिना कान बेचारा क्यों

हिजड़े पैदा क्यों होते हैं ढंग दुनिया से न्यारा क्यों

जब निर्मल नीर नदी का है तो किया समुंदर खारा क्यों

किसी के लार फिरे बेटों की किसी के एक पिल्लर क्यों ना

सबी गगन चर पर वाले पर चमगीदड़ के पर क्यों ना

गूलर पे फल भुन के वाला आता फूल नजर क्यों ना

गैर को तने बांट दिया ना कर दी ढूंढ समान

धन धन है तेरी कारीगरी भगवान

 

उल्लू को तने आंख दई दिन में ना दे दिखाई क्यों

 किसी किसी के हाथ में उंगली भगवंत 6 बनाई क्यों

जब रात बनाई सोने को चकवे ने रात जगाई क्यों

किस तरिया दुबकायी तन्ने मेहंदी के भीतर लाली

सीप को मोती बकस दिया और मणि सर्प को दे डाली

पत्थर मैं से हीरा निकले अजब बात देखी भाली

दुममे की दुम लंबी करदी इतना बोझ बढ़ाया क्यू

दुम की जगह करंट बिजली का जुगनू के चिपकाया क्यू

मेंढक ने क्या खता करी ये बिना जुबा कहलाया क्यू

जब सृष्टि इतनी लंबी रची फिर शक्ल सभी की न्यारी क्यों

 मोर भोग क्यों ना करता संभोग करें संसारी क्यूं

कव्वे को दो आंख बना के एक पुतली डाली क्यूं

दुर्बल क्यों खरगोश बना दिया शेर किया बलवान

धन धन है तेरी कारीगरी भगवान

 

 कोयल को सुर मस्त बनाया रंग बनाया काला क्यों

नारो दर कपि सुने जन्म से ऐसा ढंग निराला क्यों

जिंदगी भर ना खत्म हो मकड़ी के मुंह में जाला क्यों

वही सूरज और चंद्रमा फिर मौसम न्यारे न्यारे क्यों

गर्मी और बरसात कहीं पर पड़ते सीत करारे क्यों

मटर के दाने में बतला भुनके ने पैर पसारे क्यों

एक अचंभा भारी है यह जीव कहां से आता है

जन्म से पहले स्तन में तू कैसे दूध बनाता है

हाड़ का पिंजर पेट के अंदर किस रस्ते पहुंचाता है

आंख नाक मुंह कान बनाए भीतर कहां उजाला था

इतना बड़ा स्थूल बनाया कैसे देखा भाला था

जब हाड मास की देह बनाई कहां से लिया मसाला था

ज्ञान इंद्री कर्म इंद्री रच दी पांच तत्व परवान

धन धन है तेरी कारीगरी भगवान

 

काम क्रोध मद लोभ मोह तने जीव के गैल लगाए क्यों

अहंकार में जगत के प्राणी बुरी तरह भटकाये क्यों

अंधे कोढ़ी बहरे गूंगे जीव नजर में आए क्यों

नीचे जल और ऊपर पृथ्वी कैसे इसे टिकाया है

ढूंढा घर ना मिला पवन का कहां पर इसे छुपाया है

रेतीला मैदान कहीं ऊंचा पर्वत ठहराया है

सोना चांदी अभ्रक निकले कहीं लोहे की खान हुई

पेट्रोल धरती से निकले देख अक्ल हैरान हुई

एक भूमि जब रची एक ने तो क्यों ना एक समान हुई

हंसते बोलते पता चले ना यह जीव कहां रम जाता है

ले जा वणिया को इसे ओर कहा से लेने आता है

धन्य प्रभु प्रभुताई तेरी ना भेद समझ में आता है

रतिराम ऐसा ना करता ना रटता तुझे जहान

धन धन है तेरी कारीगरी भगवान

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