मात कहूँ या सास मेरे प्राणों की प्यारी मेरे प्राणों की प्यारी
पाया मै मत ना पड़िये मैं बहु हूँ तुम्हारी
मात कहूँ या सास
टापू मै दिया था, तेरे बेटे नै धोका
सोती नै छोड डिगर गया ना उसका रोका टोका
मुश्किल मिला ये मौका..... तेरे सुत नै कर दी न्यारी
मात कहूँ या सास………
सोवती उठी तो... हुई दर्शन की मोहताज मै
दिल्ली के मै आई बैठी दूसरे जहाज मैं
राजी हुई आज मै जो.... सेवा करूँ तुम्हारी
मात कहूँ या सास………
संगलदीप शहर है और नाम धर्म मालती
अरर जानता है कोण जग मै दुसरे के हाल की
बात ना मलाल की... बुरी समय थी तुम्हारी
मात कहूँ या सास………
हुई थी सेठानी राजी छाती से लाके
बहू को बैठाया जय करण नहवा और धुवा के
सतपाल सभा में गाके... जा रंगत प्यारी प्यारी
मात कहूँ या सास………
बहुत अच्छा
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