पटरे से तले उतर जा तू कहीं डूब के मर जा
तेरा ना चाहिए धन माल दर दर की ठोकर खारी मन्नै हो लिये तेरह साल
रखता ढाल सुभद्रा की जो बहन आपकी होती
वा पीहर में मौज करें मैं फिरू वनों में रोती हाय रोती हाय रोती
भात में आग लगा दूं मैं ना न्यू लाई ये थाल
दर दर की ठोकर.....
मोर मुकुट कुंडल वाले यह सारे तेरे खेल
मैं भी हट की पूरी हूं ना देखा गैर कै तेल
सर का जूड़ा नहीं बंधा गिरे टुट टूट कै बाल
दर दर की ठोकर खा रही.....
शादी तेरे भांजे की आज कैसे आ गई याद
सब पे रंग बिहा का चढ़ रहा मैं हुई फिरु बर्बाद बर्बाद बर्बाद
दूध दही के खाने वाले के देगा भात ग्वाल
दर दर की ठोकर खा री .....
शर्म निलहजे ना आई जब चला देन नै भात
आज तलक भी चषक रही मेरै कीचक वाली लात हाये लात हाये लात
गोरी शंकर का चेला पीरु का एक सवाल
दर दर की ठोकर.....
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