कोण परखै परखनिया होता लाल का जोहरी
कोण झूल पै झुलै बता किस राजा की छोरी
घोडा कूदा बाग़ मै तू दीख गी शामी
तेरी प्रीत की रीत जीत कै ह्रदय मै जामी
केले बरगे गात पै कैसी नरम नरम जामी
जहाँ बात प्रेम की वहाँ कहाँ हो जागी बदनामी
झोटा देकै थामि राम नै अर रेशम की डोरी रे रे रे रे रे
कोण परखै परखनिया......
कहीं फूल गुलाबी गैंदे के खिल रे पीले पीले
घटा झुकी और बून्द पड़ै बादल नीले नीले
कैसा सुन्दर बाग़ लगाया कहीं तला टीले
रोज पपीहा ना पीता कन्या वाणी नै पी ले
दोनों नैन कटीले तेरे मटकै पोरी पोरी
कोण परखै परखनिया......
मेरे मन के मंदिर मै क्यू ना दीप बालती
दर पै खड़ा भिकारी क्यू ना भीख घालती
चम्पे की सी डाल खड़ी परवा मै हालती
जब मेरा हो गया फेर तू क्यू ना प्रीत पालती
बोलती ना चालती क्यू बावली होरी रे रे रे रे रे
कोण परखै परखनिया......
सोलह सत्रह साल की सब बाता नै जानै
सर पै धरकै ढाल घुंगट खोल्या धिंगताणे
बिना छनि पी राखी पी कै फेर कोण छाने
वो ही गीत सुनादे जो तू लग री थी गानै
पीरू की ना माने मान जा उस गोरी की गोरी रे रे रे रे रे
कोण परखै परखनिया......
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