चमके लागे तेरी चन्दर्मा सी शान मैं
क्यों फिरे भटकती जंगल बियाबान में
कोयल ते भी मीठी बोली होगी पार जिगर में
हुई रूप की शीतलता जैसे चंदा चांद शिखर में
अंग अंग में जड़े सितारे मांग भरी केसर में
अल्हड़ उम्र नादान लगे तू ना गई पिया के घर में
पिता ने संगवा रखी बंद मकान में
कद हवा लाग जा इस बाली उमर नादान में
केले बरगा गात पात, तेरा गैल हवा की हाले
सो सो बल तेरी पड़े कमर मै तू, मुरगाई सी चाले
हिरनी के बच्चे की तरिया पलक निगाह नै डालें
त्याग साधना सै सदै शरीर मैं तू, नाहक अग्नि डालले
नजर झुका ले आरे चल रे जान मै
बता क्यों आई परी ऋषियों के स्थान मै
मुझ में के ढूंढे दुखिया कर्मो के हारे बंदे
घनी गरीबी तो रहे बनी पर काम नहीं मेरे गंदे
हवन की खातिर तोड़ लाकडी भजन करण के धंधे
मैं बेटा सतवान एकला मात पिता मेरे अंधे
मंदे मंदे असर हुया मेरे पाहन मै
के जादू ले री बहम बड़ा सतवान मै
किस राजा की छोरी कहिये, दिखे सुभाव नशीला
तेरे लतते चाल तू रथ मैं बैठी है कोई जबर बसीला
हम जंगली ना आगे बोलना तू मत ना करियो गिला
प्रेम पुजारी रामरतन करै कविताई का हिल्ला
टीला हो गया नामी सुर की तान मै
भई सीख कै छोरे गावें हिंदुस्तान मै
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