आँख खुले पै रहे बदन में सांस ना
जल ही जल चमकै था साजन पास ना
आंख खुले पै जहाज कहाँ ना पति पास मै पावे थी
चारो तरफ आपके पानी देख देख घबरावै थी
जाग रही या सपने मैं कुछ बात समझ ना आवै थी
धरम मालती टापू मै पागल की तरह लखावै थी
ठाडा दुःख दिल पै होता बर्दास ना
जल ही जल........
इस जीवन के जीने का जग मैं इन्तजाम नहीं दीखता
धरम मालती बच जागी बचने का काम नहीं दिखता
जी उलझन मैं उलझ गया कोई रस्ता आम नहीं दिखता
एडी ठा ठा देखे थी कोई शहर और गाम नहीं दिखता
हुआ अँधेरा आँखों मै प्रकाश ना
जल ही जल.........
जण उठ कै बादल घोर रहे ऐसी हो आवाज समन्दर मै
माणस कोई दीखता ना उड़े चील और बाज समंदर मै
धर्म मालती सोचे थी दिके है कोई राज समन्दर मैं
पति छोड़ कै चला गया या डूबा जहाज समंदर मै
किसी तरह भी जी को हो विशवास ना
जल ही जल ..........
टापू के मै भटक रही जो रह्ती महल अटारी मै
लड्डन सिंह दिल टूट गया ना हिम्मत रही बिचारी मै
गावे है सोनाथ हालसा जीत सिंह लहतारी मई
गया, सुख राजबल तो इस, गावंण की बे- मारी मै
अरे हड्डी हड्डी रहगी तन पै मास ना
जल ही जल ............
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