मन ममता में पागल होग्या जल आँखों से जान लगा

मन ममता में पागल होग्या जल आँखों से जान लगा 

चलती बरिया ताराचन्द यूँ बेटे को समझाएं लगा


एकरस हो तो काम बने कटे जनम जनम की व्याधी हो

त्रिगुण माया बीच जीव को कदे गमी कदी सादी हो

ढलती फिरती छा दुनिया मै सुख दुःख दोनों म्यादी हो

अपने धर्म सै ना गिरते दिखे जो माणस बुनियादी हो

बे टे के जी पै चोट लगै मुँह फेर कै अस्त्र छुपाण लगा

मन ममता में....


प्यार बिना प्रितम नहीं मिलता सत बिन रस्ता आम नहीं 

संतोष करे बिन सुख नहीं मिलता दया करे बिन धाम नहीं 

दान करे बिन धन नहीं मिलता परमार्थ बिन नाम नहीं

करम करे बिन फल नहीं मिलता भजन करे बिन राम नहीं

ज्ञान के जरिये ताराचंद ममता की आग दबान लगा

मन ममता में...........


चोरी जारी दुनिया मै बुरी मन सै आप मानिये तू

बड़ों की सेवा करने में सदा हर का जाप मानिये तू

मेरे से ज्यादा दुनिया में मत और महा पाप मानिये तू

इस मन्सा सेठ नै चंद्र गुप्त सदा अपना बाप मानिये तू

पर धन माटी ह मानिये तू पर त्रिया मात बतान लगा 

मन ममता में.........


राम राम ले मंशा सेठ कुछ गहरा ख़्याल राखिए तू 

अपना करके अपने घर कंगले का मान राखिये तू 

चाहे धरती पे पटक दिए चाहे बोझ संभाल राखिये तू

अब कह नहीं सकता मेरे बेटे नै चाहे जिस ढ़ाल राखिये तू

मान राजबल लड्डन सिंह अब हटके गाना गान लगा

मन ममता में.......

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