मन की बात बता सौदागर तन्नै जो दिल मै धर राखी
यो त सराह कबूतर खाना जिसमै सूरत तराह तराह की
भवरा बनकै मंडराया तू फूल देख गुलशन मै
अनायास दुष्यंत मिला जैसे शकुंतला सै वन मै
नर सुल्तान बड़ा बाग्या मै लगी लालसा मन मै
तू आशिक़ हो गया प्रेम की झाल जाग गयी तन मै
नशा बदन मै ऐसा जैसे तन्नै प्याली पी मदिरा की
सराह कबूतर खाना जिसमै सूरत.........
हुसन देख मन मुग्ध हुआ यो घणा प्रेम का प्यासा
हूर मेनका देख रीझ गे विश्वामित्र खुलासा
भीम हिडिम्बा पै रीझा ऐसी कर दिल मै अभिलाषा
पैसे का है मोल जगत मै बिन पैसे नहीं तमाशा
आशा पूरी हो तेरी मैंने दिल मै यही सलाह की
सराह कबूतर खाना जिसमै सूरत...........
मन मोहित हो गया तेरा मै जणू सु गहराई
कामदेव के वश मै, यो सै नहीं जनक की जाई
मचल गया दिल सौदागर तेरे दिल मै हूर समायी
मनसा पूरी हो ज्यागी जो पाटै धन की खायी
मन चाही हो दुन्वा की, ना जाहिर हो चालाकी
सराह कबूतर खाना जिसमै सूरत............
ऋषि पाल सिंह भटियारी नै सौदागर समझाया
यो रानी सै राज घरा की वक़्त घेर कै लाया
बड़े घरा की शान हो ऊँची यो जग कहता आया
पाँव पलने मै दिखे जो जैसे घर का जाया
कोशिंदर नै गाय सै, कर कै पहचान सभा की
सराह कबूतर खाना जिसमै सूरत..............
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