टापू के मै सोती दई छोड दुखयारी फिर के था काम आवाज़ का
फिर के था काम आवाज़ का दिया लंगर खोल जहाज का
आगे जहाज चला जावै फिर पाछै देख लखा कै
चन्द्र गुप्त जहाज के अन्दर गिर गया था चकरा कै
बंद दिखनी……………
जब बंद दिखनी होगी आँखों से प्राणो प्यारी।।
दई छोड़ दुखियारी……………..
ये कपडे नये नये ढंग के मेरे जी नै दुःख दे रे हैं
ये बर्तन और सिन्दूक पलंग किस काम के मेरे है
फिर पानी के मै…………..
फिर पानी के मै बगा दयी दुख मांगदात सारी।।
दई छोड़ दुखियारी………………
जिंदगी भर ना भूलूँगा ऐसी लागी चोट मरम की
नहीं मिटाये सै मिट ती है लिखी रेख कर्म की
क्या कह दूँ ………..
क्या कह दूँ लाचार घणी, को ई कर गई लाचारी।।।
दई छोड़ दुखियारी…………………
लडडन सिंह राजबल ऐसी घटना घट गयी साथ मेरे
टापू वाला सीन रहेगा हिरदय मैं दिन रात मेरे
ब्रह्मपाल जीवन जग मैं ………
ब्रह्मपाल जीवन जग मैं दिके जीना कर दे भारी।।।
दई छोड़ दुखियारी…………………………
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