अरे ज्यब सिंगरण लाग्गी, हूर मेनका प्यारी

अरे ज्यब सिंगरण लाग्गी, हूर मेनका प्यारी................

 

गहणे का उठाया डिब्बा, जेवर भरया कीमतदार,

पहरण खात्यर बाहर काढ़या, मन मैं करणे लगी विचार

एक-एक न्यारी - न्यारी चीजों की लगादी लार,

हाथ के माह सिसा लिया, चेहरे की सफाई देखी,

मोट्टी-मोट्टी आरव्या के माह, घाल कै नैं स्याही देखी,

रोली टिक्का और बिन्दी, मात्थे उपर लाई देखी,

किलफ सुनहरी सारह बोरला, अदा बणाल्यी न्यारी.......

 

हंसली जुगनी कंठी माला, छाती उप्पर गेड्या हार,

सोन्ने की हमेल भारी, एक मिनट में करी त्यार,

करण फूल जोड़े आले, घुघरवां की झंकार,

बोड्डी लाके चोल्ली पहनी, छाती पर कडे थे फूल,

सिर पै चुन्नी रेसमी थी, जिसका रह्या बुक्कल खूल्य,

सतरा ठाहरा साल की थी, मद जोब्बन मैं रही टूल्य,

रूप इसा खिलता आवै जणू, रुत्त पै केस्सर क्यारी...........

 

छन्न कंगण ओर छन्न पछेल्ली, बाज्जुबंद हाथ मैं,

जितणी अपणी सारी टूम, सजा ल्यी सब गात मैं,

पायल और पाजेब पहनल्यी, त्यार हूई एक स्यात मैं,

घाघरे की धूम लाग्गै, सांथल उपर बाज्जे नाडा,

नैना के इसारे ऐसे, आदमी के लादें झाड़ा,

मुनी का डिगादें ध्यान, इन्दर जी का मेटें राड़ा,

इसी चली सज्य धज्य के मेनका, जणूं लेरया हंस उडारी ...........

 

केले किसी गोभ हिली, पन्दरा सेर का तोल इसा,

कालजे नैं चूंट्य रह्या, मिट्ठा मिठ्ठा बोल इसा,

कहीं कहीं पै पैर धरै, पंछी रह्या डोल्य इसा,

छुन छुन छन छन चाल इसी ,जणु जल के माह मुरगाई,

इन्दर लोक चाल्यी परी, मृत्यु लोक की सुरति लायी ,

घडी स्यात बीती नहीं , मुनि जी के धोरे आयी ,

लख्मीचंद कहे नाचण लाग्यी , पर मन माह दहसत भारी.................

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