गऊ ब्राह्मण साधु की सेवा अतिथि टहल बजाणे से
तीन जन्म
के पाप
कटे भई ईश्वर
के गुण
गाणे से.
आपस के मै, मिल जल कै थम, धर्म कर्म को याद करो
गऊ ब्राह्मण साधु की सेवा में कभी नहीं विवाद करो
बर्ह्म रूप भगवन की सेवा हित चित से इमदाद करो
दरिया कैसी झाल रोक के ईश्वर से फरियाद करो
हाथ जोड़ के दो भिक्ष्या कोई मांगता घर पे आने से
छोड़ के ईर्ष्या रहो आनंद से यो ढंग स पार उतरने का
किसी समय में भय मिटज्या इस टोटे में दंड भरने का
रहो प्रेम से जातन बणाओ सहज गुजरा करने का
कहा ऋषियों ने सेवा है फल जंगल बिच विचारणे का
सहर म बेचो नफा रहेगा तोड़ लाकड़ी ल्याणे से......
दासी के सूत नारद जी न एक ब्राह्मण के घर जनम लिया
गऊ ब्राह्मण साधु सेवा से चित में सुमिरण खूब किया
चर का अमृत दिया ऋषियों ने समझ के अमृत नीर पिया
बड़े बड़े ऋषि मुनियो ने फेर नारद को वरदान दिया
शुद्ध आत्मा हुई नारद की बचा हुआ अन्न खाने से
जितना धन कमा के ल्याओ चार जगह पे भाग करो
एक तुम्हारा तीन पुण्य के अति लोभ का त्याग करो
दबा लिया अधरम ने ज्यादा शुभ कर्मा की जाग करो
छोड़ प्रै आशा तृश्णा हरी भजन की लग करो
कह लख्मीचंद हो ज्ञान की वर्धि गुरु को शीश झुकाने से। .....
Comments
Post a Comment