सारा कुणबा भऱया उमंग मैं, घरां बोडिया आई।
परेम मैं भरकै सास्सु नैं, झट पीढ़ा घाल्य बिठाई।।
फुल्लां के मैं तोल्लण जोग्गी, बहु उमर की बाली,
पतला पतला चीर, च्यमकती चोट्टी काली काली,
धन धन इसके मात पिता नैं, लाड लडा के पाली,
गहणे के माह लटपट हो री, जणूं फुल्लां की डाली,
जितनी सुथरी धरमकोर सै, नां इसी ओर लुगाई।।
एक बहु के आवण तैं, आज घर भऱ्या सै माहा,
मूंह का पल्ला हट ज्या तैं, लाग्गै बिजली का च्यमकारा,
खिली रोसनी रूप इसा जणूं, लेऱ्या भान उभारा,
भूरेभूरे हाथ गात मैं , लरज पडै सै ठाहा,
आच्छा सुथरा खानदान सै, ठीक मिली असनाई।।
एक आद्धी बै बहु चलै, जणूं लरज पडें केले मैं,
घोट्यां के मैं जड्या हुया था, च्यमक लगै सेल्ले मैं,
ओर भी दूणां रंग चढग्या, हंस, खाए खेल्ले मैं,
सास्सु बोल्ली ले बहु, खाल्ये घी खिचड़ी बेल्ले मैं,
मंदी-मंदी बोल्ली फिर बहु, मूंह फेर्य सरमाई ।।
देब्बी कैसा रूप बहु का,चांदणा होऱया,
बिजली कैसे चिमके लाग्गैं, रूप था गोरा,
फली की खसबोई उप्पर्य, आसिक हो भोरा,
आंख्य कटीली रूप गजब का, स्याही का छुटा डोरा,
लखमीचन्द कहै नई बहु थी, घर देख्य घबराई।
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