फागुन की पावन दोज
मोहन की खोली मै रंग बरसै
सब भगतनी झूमे मस्ती मै
गई बैठ ज्ञान की किश्ती मै
सावित्री सती सुलोच
मोहन की खोली मै रंग बरसै
फूलों की कली बरसती है
छा रही मोहन की मस्ती है
आ रही स्वर्ग सी मौज
मोहन की खोली मै रंग बरसै
कुछ धूने की रज उठा रहे
चंदन कर माथे चढ़ा रहे
जा से कटे दुखों का बोझ
मोहन की खोली मै रंग बरसै
नादान कमल सिंह झूम रहे
सच्ची चौखट को चूम रहे
जो भजन सुनावे रोज
मोहन की खोली मै रंग बरसै
मोहन की खोली मै रंग बरसै
सब भगतनी झूमे मस्ती मै
गई बैठ ज्ञान की किश्ती मै
सावित्री सती सुलोच
मोहन की खोली मै रंग बरसै
फूलों की कली बरसती है
छा रही मोहन की मस्ती है
आ रही स्वर्ग सी मौज
मोहन की खोली मै रंग बरसै
कुछ धूने की रज उठा रहे
चंदन कर माथे चढ़ा रहे
जा से कटे दुखों का बोझ
मोहन की खोली मै रंग बरसै
नादान कमल सिंह झूम रहे
सच्ची चौखट को चूम रहे
जो भजन सुनावे रोज
मोहन की खोली मै रंग बरसै
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