अरे रथ जोड़ सारथी, पल की करे रे मत ना देर

 अरे रथ जोड़ सारथी,
पल की करे रे मत ना देर
 
सारथी जल्दी रथ सजवा कै
घोड़े श्वेत जोड़ दे जाकै
अरे रे सिरसा में जाकै
सवर्ण की करूंगा बखेर
 
अरे झूठी कहूं ना साची बाचू
भक्तों का भक्ति रस मैं चाखू
लाज नरसी की राखहूं
माला रहा रे मेरी फेर
 
लेकर के एक अरज सारथी, गौशाला मैं आया था
फिर नरसी से बतलाया था
 
अब मत ना ज्यादा देर करो
चलने की सुरती मन मैं धरो
चल करके ऐसा भात भरो
जैसा मनसा नै लिखवाया था फिर नरसी से बतलाया था
 
सुन राजी बहुत हुए मन मैं
गए बैठ अर्थ मैं एक पल मैं
चलकर के पहुंचे महलन मैं
जहां रंग ब्याह का छाया था फिर नरसी से बतलाया था
 
सोने चांदी के ढेर किए
हीरे मोती के दान दिए
कुछ कसर रहे तो मांग लिए
न्यू गढ़वाला फरमाया था फिर नरसी से बतलाया था
 
गढ़वाले के कर के दर्शन
नर नारी हुए मन मैं प्रसन्न
रामपाल कह कृष्ण नै मेह
सवर्ण का बरसाया था फिर नरसी से बतलाया था

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