लख-चौरासी खतम हुई ना बीत कल्प-युग चार गए।

 लख-चौरासी खतम हुई ना बीत कल्प-युग चार गए।

नाक में दम आ लिया, करें क्या, हम मरते-मरते हार गए॥टेक॥

कितने पिता हुये हमारे, हम हुए पुत्तर याद नहीं

कितनी माताओ नै दूध पिलाया, दूध पीया पर याद नहीं

कितनी बहनो नै गोद खिलाया कोई भी घर याद नहीं

कितनी संतान करी पैदा हम, फेर गए मर्याद नहीं

आर हुये कभी पार हुये, कभी डूब बीच मझधार गए

लख-चौरासी खतम हुई ना बीत कल्प-युग चार गए॥टेक॥

 

कभी अंडे से पैदा हुये कभी पैदा हुए पसीने से

कभी जल मै हम डूब मरे कभी उमर कटी जल पीने से

कभी नरक मै पड़े सड़े हम अपना करम करीने से

फिर भी मोक्ष हाथ ना आयी मोत भली इस जीने से

शुभ-अशुभ कर्म करने से हम स्वर्ग नरक कई बार गए

लख-चौरासी खतम हुई ना बीत कल्प-युग चार गए॥टेक॥

 

नीर गले कभी जले अगन मै, जोगी बन कभी जोग लिया

हम आये थे भोग भोगने, भोगो ने हमको भोग लिया

कभी ख़ुशी मै मगन हुये कभी श्योगी बनकै श्योग लिया

कभी खाट मै पड़े सड़े कभी रोगी बनकै रोग लिया

माया के चक्कर नै तज कै, ऋषि अपना जनम विचार गए

लख-चौरासी खतम हुई ना बीत कल्प-युग चार गए॥टेक॥

 

काम क्रोध माध लोभ मोह मै करना चाहु था बस मै

ये तो बस मै हुये नहीं पर हम फ़स गे इनके रस मै

आशा तृष्णा मोह ममता नै मै मार गिराऊ गर्दिश मै

वे गर्दिश मै मरे नहीं पर हम फ़स गए थे अपगश मै

श्री देबिराम गुरु लख्मीचंद भी अंत मै यही पुकार गए

लख-चौरासी खतम हुई ना बीत कल्प-युग चार गए॥टेक॥

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