हो.. घूम रहयो पर्वत पै

 हो घूम रहयो पर्वत पै

हो .... याने लाटा तो लायी रे छिटकाय

हो घूम रहयो पर्वत पै

 

पर्वत पै एक ताल खुदाया जल पीवे गऊ लंगार

हो ... नर नारी यहाँकी माटी छांटे मोर भरे रे किलकार

हो घूम रहयो पर्वत पै

 

चौड़ी शिला को बैठना रे ठंडी बड़ की छाय

हो ... ऐसो भजन करो मोहन का सिंघासन हिल जाय

हो घूम रहयो पर्वत पै

 

काली खोली महिमा प्यारी दुनिया दरश को जाय

हो ... रोशन ज्योत जलै मंदिर मै लाल ध्वजा रे लहराय

हो घूम रहयो पर्वत पै

 

चंद्र सखी मोहन का मिलना शोभा ना वरणी जाय

हो ... मोर मुकुट बंसी वाले का गावे भजन सुनाय

हो घूम रहयो पर्वत पै

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