घर मैं कोन्या टुक लागरी भुख कालजा खा सै तेरे बेटे रोवै चार कड़े की माँ सै

घर मैं कोन्या टुक लागरी भुख कालजा खा सै

तेरे बेटे रोवै चार कड़े की माँ सै


पति और पत्नी दोनु मिलके मैथुन से औलाद करें

पिता का सै फर्ज अपने पुत्र की जायदाद करे 

पुत्र का भी फर्ज अपने पिताजी को याद करै

पिता ही से पुत्तर बनता पुत्तर से चले वंश बेल

आत्मा का आत्मा से आत्मा के संग मै मेल

तीन आत्मा कट्ठी होकै, पुत्तर का रचावै खेल। २ 

मोह ममता का यो नीर बना दिया सीर भरम की ना सै 

तेरे बेटे रोवै चार कड़े की माँ सै


पति पत्नी दोनो मिलकै पुत्तर की बनावे शान 

पांच तत्त्व आन मिलै जीव को मिलग्या स्थान

पच्चीस से यो मेल हो या आत्मा को पूरण ज्ञान

सत रज तम ये तीनो सृष्टि के ये रचाने वाले

अंत करण मन बुद्धि चित.. माया के दिखाने वाले

पिंड और बिरहमण्ड अण्ड खेल के खिलाने वाले। २ 

हेरै...  काल बलि की गैल खिला कै खेल जमाना जा सै 

तेरे बेटे रोवै चार कड़े की माँ सै


9 महीने तक गारभ के महा खून पिया दिन और रात

बाहर लिकड़ तै  चूची पी ली खूब मारे पैर हाथ

पुत्तर नाम पड़ गया जग मै एक पिता एक मात

डेढ़ साल के पाछे फेर रोजी का सवाल होया 

माता का गया सुख दूध, पिता जी कंगाल होया

बेटे तेरे चार रोवै भूखा का बे हाल हुया।  २ 

ये रोवेंगे दिन रात बिगड़गी जात जिगर मै घा.. सै

तेरे बेटे रोवै चार कड़े की माँ सै


गरु चेला हमने देखे भूख मैं लड़ाई करते

पिता पुत्र हमने देखे भूख मैं समाई करते

पति पत्नी हमने देखे भूख मैं कमाई करते

मांगने से मान जाए न मांग्या करता लख्मीचंद

मांगे राम मांग्या होया मांगने पै लगया पाबंध

कृष्ण धोरे मांग लायो कट ज्यांगे दिलद्दर फंद।  २ 

वो सबसे बड़ा नरेश हरी का देश पाह-धरा राह सै

तेरे बेटे रोवै चार कड़े की माँ सै

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