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श्री किरसन जी लगे सुनावन गीता का उपदेश

जमना पार रोज का जाना मै दूंगी नंद के घरा उल्हाना

गंगा जी तेरे खेत मैं री माई गडे सैं हिंडोळे

रोवण आळी मनैं बतादे के बिप्ता पड़गी तेरे म्हं

भरण गई थी नीर राम की सूं।

20 वर्ष तक दुनिया के में लख्मीचंद याद दिवाया

उग्रसैन नै देवकी खातर वर टोहवन की सोची

बच्चे का बदला करकै , चला छाज मै लड़की धरके

घर मैं कोन्या टुक लागरी भुख कालजा खा सै तेरे बेटे रोवै चार कड़े की माँ सै

चन्द्रहास चाँद सा चेहरा, माँ देखै कोठे चढ़कै

तेरे भवन मै खड़े पुजारी खड़े पुजारी

या साड़ी किसकी जैमल कड़े तै मंगाई रै

कंश मुरख तन्नै पता नहीं तू किसका बन रह्या गढवाला

जीना झूठा मरना सच्चा, ना मरने मै देरी सै

तेरी दुनिया मै, जो भी चला आता यहाँ से नहीं जाना चाहता

बालक बाट देखते होंगे, मै कह कै भी ना आया हो

मै भरन गयी थी जल नीर राम की सू

चरखले आळी, तेरा चरखा बोले ओम नाम, तू रट ले तुही तुही

Bhajan Sangrah

हो... भगत रोया जंगल मै

सभा मै मेरा, तुम्ही तो करोगे निस्तारा